सोऽहम् - C'est Moi

र्पुथ्वीतलावरील माझे विचार आणि श्रद्धा.
Some thoughts and beliefs of my life on planet Earth.

Monday, February 17, 2014

श्री रामचन्द्र कृपालु



॥ श्री रामचन्द्र कृपालु ॥

 श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् । 
नवकञ्ज लोचन, कञ्जमुख कर, कञ्जपद कञ्जारुणम् ॥१॥ 

कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् । 
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची नौमि जनक सुतावरम् ॥२॥ 

भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् । 
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् ॥३॥ 

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम् । 
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् ॥४॥ 

इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् । 
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादि खलदलगञ्जनम् ॥५॥ 

मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो । 
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥ 

एही भांति गोरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली । 
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥७॥ 


गोस्वामी तुलसीदास
 
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